रौशनी दुविधा में है

रास्ते भी ना
कितना अकेला होते है 
मुसाफिर तो मंजिल को निकल जाते है
कोई भी किसी भी
रास्ते के लिये नही रुकता 
ठहरे हुये रास्ते   
खडे रहते है श्रमशील 
हम जैसो को आगे बढाने के लिये
पर उनका भी एक दर्द है
और वे इंतजार में है दरअसल
मंजिल कब ठहरेगा उनके वास्ते 

रेगिस्तान के फैलाव और तपिश में  
उसकी नजर जवान हुई थी
और इसतरह इश्क के मृग-मिरीचिका में 
रेगिस्तानी कैक्टस से दो-चार होती रही
कांटो की चुभन में रात सांस लेती 
अश्क सूरज की प्यास बुझाता
दरिया अरमान के बहते हुये
सुखते रहे थे

जब तुम्हारी उंगलियो ने
आसमान से झरते नीले सपने को
स्पर्श का जामा पहनाया था
और उसी वक्त 
समंदर के छिछले तल में उसे
छोड दिया था तन्हा 
तब भी वह ढुँढती रही मोतियाँ
तुम्हारे उंगलियो के वास्ते 

बहुत दूर निकल गई थी
घुटनो के बल अकेले ही
उसके कंधो पर नन्ही कोंपले तो थी
पर पेड की छाँव दूर दूर तक नही
आज भी उसे छाँव
एक छलावा लगता है
और भटकावमात्र प्यास का

असमान में पक्षियो के झुंड को
उडते देखती और
घंटो सोचती, खुशकिस्मत है ये कि
साथ साथ लौटते है घरौंदो को
इनकी जुबान नही होती पर इक्कठा रहते है
और कितना कुछ पहचानते है
आंखो से एक-दूसरे को
कितना अच्छा होता कि इंसानी तहजीब में
यह बात शुमार होती

जिंदगी जितना भरती
उससे कई गुन्ना अधिक खाली हो जाती
लोगो को कहते अक्सर सुना था कि
खाली हाथ है हम 
जिसे वे भरना चाहते थे   
भूख उन सभी लोगो को भी थी
जिनका घर सोने का था

घुप अंधेरा
जहाँ के हम सब वाशिंदे थे 
पर अपने बच्चो को नही दिखाना चाहते थे
रोना जिंदगी का
हर हाल में
क्योंकि वे  जानते थे कि 
कि रौशनी में
उजला रंग कम काला ज्यादा है
जो जीवन को प्रज्जवलित करता है

रौशनी दुविधा में है
सच्चाई से परहेज क्यो है आंखो को ??

कैद है धड़कन

लोगों का कहना था कि
आज चाँद पर उथल-पुथल है
इसतरह मेरी जमींन की चाँदनी धुंधलाने लगी 
और धडकनें भी
तुम्हारे मुठ्ठियों में बंद पडी रही

रात स्याह कुछ ज्यादा थी
वह खडी रही मेरी जमीन पर
भोर के इंतजार में
पर सूरज थोडा कम था
सुबह आंख मुदे पडा रहा
तुम्हारे किनारे से लग

ना तुमने मुठ्ठियाँ खोली 
ना भोर ने आंखे  
न रात को नींद आयी
और धडकनें भी बंद रही
तुम्हारी मुठ्ठियों में  कही !!

एक पूरे दिन में

हरतरफ कुछ बह रहा है
सूख - सूखकर
वह मंत्र भी जिसने दुनिया को
चलना सिखाया

देखो ना
उस पुराने किले के बाहर
जो नदी थी ना
जिसमे बुद्ध का अहिंसा वाला मंत्र भी सूख गया और
जमीन फट गई है

आसमान का नीलापन भी धुंधला गया है
वही हमारे हाथो के बीच का
तुम और मै भी
भूरे रंग की दुविधा में झूल रहे है

शीशे में किसी भी अक्स का चेहरा साफ जो नही है
जमीन से जुडी हर चीज
पृथ्वी की बढती ताप से
भाप बनके उड जो रहे हैं

सबने तो अपनी अपनी कह ली
प्रश्न तो यह है कि
बापू की बहुत सारी बातो से
सहमत तो है हम सब
पर कितने कदम चल पाते है
एक पूरे दिन में !!





भारत मेरा देश

भारत मेरा देश
मेरी बेटियों सा दिखता है मुझे
उनके नाजुक हाथो में
खींची लकीरो जैसा ही तो हैं
उसका आने वाला सबेरा

आंखो में रौशन खुशी जैसा ही
इसकी प्रकृति सम्पदा
उनकी हथेलियों सी नरम
इसके पावन धरती
अपार सुकून जैसे
क्षितिज पर विस्तार इसका
खिलखिलाती है तो
मुझे तिरंगे की याद दिलाती है

पर जब मै ख्यालों में
इन्हे बडा होते देखती हूँ तो
डर से भर उठती हूँ
इनकी सुरक्षा को लेकर
तब भी मेरा देश भारत
मुझे याद आता है !!!