ठहर तो सही सफर अभी बाकी है

ठहर तो सही
सफर लम्बी है
धूप बेसुमार
चिलचिलाती छाँव से
थकान प्यासी है

अगले दो कदम पर बादल मिलेंगे
सूना है वे
ठंडी हवायें ढोते हैं पानी नही
चाहत है उन्हे भी देख लूँ जरा

प्याउ है उधर
जा थोडा पानी पी ले
सफर हैं तो प्यास लगेगी ना

जल्दी जाने की चाहत मत रख
वरना  पैर
कंटीले वक्त से
जख्मी हो जायेंगे
आखिर चाहत अंधी और बहरी
जो ठहरी

देखा..... ना
कल ही तो
हिमालय से आनेवाली ब्यार
लहूलुहान पडी मिली थी
छूट चुकी चौराहें पर

सफर मे कई आंखो का होना
जरूरी सा लगता है अब
है ना....

6 comments:

  1. जल्दी जाने की चाहत मत रख
    वरना पैर
    कंटीले वक्त से
    जख्मी हो जायेंगे
    आखिर चाहत अंधी और बहरी
    जो ठहरी
    शायद आपका ब्लॉग पहली बार देखा , भावों की सुंदर अभिव्यक्ति देखने को मिली , बधाई

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  2. जल्दी जाने की चाहत मत रख
    वरना पैर
    कंटीले वक्त से
    जख्मी हो जायेंगे
    आखिर चाहत अंधी और बहरी
    जो ठहरी

    bahut hi khubsurat likha hai.....

    aadar sahit

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  3. Behtreen Abhivyakti!!!!Behtreen Abhivyakti!!!!

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  4. बहुत ही बढिया पोस्ट है

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