सीलन है गुजरें वक्त के दीवार पर

कई दिनों से
खाली पडी है दीवार
जो कभी अपनों की
तस्वीरों से हरी भरी रहती थी

जानें कौन से वक्त में
बना डाली थी
हवाई किला उसनें
दीवार पर टंगी तस्वीरों ने 
सांस लेना छोड दिया था 

सख्त दीवारों में
सीलन पडी थी गुजरें वक्त का
जिन्हें छूते ही बेज़ान हो
गिरने लगती थी पपडियाँ

दीवार सूनी थी
खराश गहरी

लौटता वक्त बडी सलिकें से
कुरेद गया था उसे !!

10 comments:

  1. लौटता वक्त बडी सलिकें से
    कुरेद गया था उसे !!

    संवेदनशील अभिव्यक्ति

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  2. बेहतरीन कविता।

    सादर

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  3. बहुत बढ़िया रचना.

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  4. सख्त दीवारों में
    सीलन पडी थी गुजरें वक्त का
    जिन्हें छूते ही बेज़ान हो
    गिरने लगती थी पपडियाँ

    ...बहुत मर्मस्पर्शी और संवेदनशील प्रस्तुति..बहुत सुन्दर

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  5. बहुत ही अच्छी रचना....

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  6. लौटता वक्त बडी सलिकें से
    कुरेद गया था उसे !!

    बहुत बढ़िया

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  7. बेहद गहन और मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति।

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  8. सार्थक और बेहद खूबसूरत,प्रभावी,उम्दा रचना है..शुभकामनाएं।

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