सांसों के इर्द गिर्द घुमती जिंदगी

जिन्दगी कई तरह से
धुमती रही चबुतरे पर
रखे सांसों के इर्द-गिर्द
पनाह चाहिये उसे
तेरी तीखी तल्ख
शिकायतों से बचने के लिये

चलता उगता बढता वक्त
कभी भी नही रुका 
छिले जख्म सुखे नही कभी
नम सांसो से
जिंदगी पिघलती रही

शिकायते तेरी जायज़ रही
पहचान तो मुक्कमल हुई
करीब आते गये और 
दो गज जमीन नसीब ना हुई
रुह को

जिंदगी अपने लिबास में
खाक छानती रही
दरख्त की
दर्द को नंगे हाथो में लिये
फिरती रही वो

यह सच है कि
अभी एक ख्याल बाकि है
तू मिल तो सही !! 


13 comments:

  1. दिल को छू लेने वाली रचना बहुत अच्छी लगी .....

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  2. बेहतरीन लिखा है!

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  3. बहुत ही बढ़िया।

    सादर

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  4. बहुत सुन्दर बिम्ब प्रयोग...
    खुबसूरत भावाभिव्यक्ति...
    सादर बधाई...

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  5. बेहतरीन ....दिल तक पहुंची

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  6. गहन शब्‍दों का समावेश ।

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  7. जिंदगी अपने लिबास में
    खाक छानती रही
    दरख्त की
    दर्द को नंगे हाथो में लिये
    फिरती रही वो ...
    गहन भाव युक्त अभिव्यक्ति !!
    सादर !!!

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  8. tera milna abhi baaki hai....bahut sundar sandhya

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  9. ह्र्दय की गहराई से निकली अनुभूति रूपी सशक्त रचना

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  10. bahut hi behterrn dhang se likha hai aapne sandhyaji..wah

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