छोडता दोनो जहान पर एक निशान है वो

कई दिनो तक
उडता रहा धूये की तरह और
कई रातों के सिरहाने
बिठाया उसने ख्वाब को
कबूतर के सही पते पर 
पहुंच जाने के इंतजार में
 
गली और नुक्कड पर
अपने होने के यकीन में
लेकर फिरता कोई खत
मंजिल की तलाश में बना
मुसाफिर का चौराहा सा
एक शक्स

गली के सभी घरो पर
एक जैसा लिखा कुछ
बिन पता हुये जा रहे
खत के
एक एक अक्षर से
टपकता रहा वो
ढुंढ लिये जाने तक
बैठा रहा कुरेदता रहा जमीन   

भूख और सपने के
बीच के आग सा
होता धुँआ धुँआ
छोडता दोनो जहान पर
एक निशान है वो !!  

9 comments:

  1. गली और नुक्कड पर
    अपने होने के यकीन में
    लेकर फिरता कोई खत
    मंजिल की तलाश में बना
    मुसाफिर का चौराहा सा
    एक शक्स
    गहरे भाव लिए सुंदर अभिव्यक्ति
    समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
    http://mhare-anubhav.blogspot.com/

    ReplyDelete
  2. Nice post.

    पूछा है तो सुनो,

    अब सो जाओ

    लेकिन थकना मस्ट है पहले

    थकने के लिए

    चाहो तो जागो

    चाहो तो भागो

    कौन किसे छोड़ता है

    जिसे देखो यहां वो नोचता है

    हरेक दूसरे को निचोड़ता है

    कोई कोई तो भंभोड़ता है

    ख़ुशनसीब है वो जो तन्हा है

    कि महफूज़ है मुकम्मल वो

    सरे ज़माना आशिक़ मिलते कहां हैं ?

    हॉर्मोन में उबाल प्यार तो नहीं

    पानी बहा देना प्यार तो नहीं

    क़तरा जहां से भी टपके

    आख़िर भिगोता क्यों है

    ये इश्क़ मुआ जगाता क्यों है ?

    ये पंक्तियां डा. मृदुला हर्षवर्धन जी के इस सवाल के जवाब में

    अब सो जाऊँ या जागती रहूँ ?

    ReplyDelete
  3. बहुत सुंदर
    क्या कहने

    आभार

    ReplyDelete
  4. बहुत सुन्दर भावाव्यक्ति।

    ReplyDelete
  5. बेहद खूबसूरत....

    ReplyDelete
  6. संध्या जी ..क्या लिखती है आप ...आपकी रचनाएँ दिल को छू लेतीं हैं.....बेहतरीन

    ReplyDelete