क्षितिज पर ख्वाब लिये बैठा रहा

घटते बढते चाँद सा
सलोना चेहरा और
आंखे जलते दो तारे
पूरे आसमान पर 
पंक्षी के उडते रहना और
माप लेना  उसका
सूरज चाँद 

उंचाई मापने वाले
गहरे भी उतरे
और
पाताल के किसी कोने में
पडे तडपते पिंजडे तक पहुंचे
यह जरुरी नही   

अंधेरो के पहरे में
कैद एक बुत 
जिस्म और जान के
पत्थर होने तक चुप 

बादलों को क्या पता
उनके बरस जाने के बाद
पानी कहाँ बहकर जाता 
किससे मिलता है और
किससे नही मिल पाता

उफनता ऐसा जैसे
डुबोता कई महासागर
किनारो से लगकर
धरती पर फैलता 
लहलहाती हरी घासों में

इक चाँद जो
सौंधी मिट्टी की गहराई को
मापने का ख्वाब लिये बैठा रहा  !! 


15 comments:

  1. आज 23- 09 - 2011 को आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....


    ...आज के कुछ खास चिट्ठे ...आपकी नज़र .तेताला पर
    ____________________________________

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  2. बहुत सुन्दर भावाव्यक्ति।

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  3. बहुत बेहतरीन।

    सादर

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  4. बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति

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  5. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ...

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  6. A good Expression,KAYAL HOON MAIN AAPKA

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  7. VAAH.....ACCHHA LAGAA APKAA LIKHNE KA STYLE....
    AAKHIRI TEEN PANKTIYON NE KAVITA KO DHARTI KE GAHRE MEN LE JAAKAR BHI UNCHAAYIYON TAK UTHAA DIYA..

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  8. बहुत गहन और सुन्दर अभिव्यक्ति..

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  9. भावपूर्ण सुंदर अभिव्यक्ति समय मिले तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
    http://mhare-anubhav.blogspot.com/

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  10. बहुत सुन्दर भावाव्यक्ति......

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  11. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति. बधाई सुंदर प्रस्तुति के लिये.

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  12. अंधेरो के पहरे में
    कैद एक बुत
    जिस्म और जान के
    पत्थर होने तक चुप
    ...बेहतरीन।

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