आनाथ कदमों की सिसकियाँ

धुंध के अंदर है
सबकुछ घुमता हुआ
अस्पष्ट कदम
कुछ भी नही स्पर्श सा

टटोलते हुये
खुद को सम्भालते हुये 
अनाथ कदमों की
सिसकियाँ नही थमती

अजनबीपन
एहसास से भरा
हर एक सांस
खत्म होती हुई
 
सुबहें डुबती हुई
सूरज
उगाये थे कभी
हथेलियों पर
बडे आरमान से

प्यास
अंधेरे में चलते हुयें 
रौशनी तलाशती है
पर छिन लेता है वह
और खरोच देता है
जिस्म को
हर दफे वही से !!

6 comments:

  1. धुंध के अंदर है
    सबकुछ घुमता हुआ
    अस्पष्ट कदम
    कुछ भी नही स्पर्श सा... गहन अभिवयक्ति.....

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  2. सुंदर कविता. बेहतरीन प्रस्तुति

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  3. अजनबीपन
    एहसास से भरी
    हर एक सांस
    खत्म होती हुई
    सुंदर अभिव्यक्ति बधाई

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  4. उगाये थे कभी
    हथेलियों पर
    बडे आरमान से

    प्यास अंधेरे में
    चलते हुयें
    रौशनी तलाशती है

    पर छिन लेता है वह
    और खरोच देता है
    जिस्म को
    हर दफे वही से !!
    वाह बहुत सुंदर एवं गहन अभिव्यक्ति....समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है.......

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  5. मन के गहन भाव ... अच्छी रचना

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