कैनवास पर फैला आसमान

छाँव में बैठी
एक नन्ही सी जान 
छू लेना चहती है
कैंनवास पर फैले
लम्बे चौडें आसमान को

ब्रुश से बिखेरते हुये 
कुछ जमीनी रंगों को  
और समेटना चाँद-तारो को
नन्हें हाथो से

जिद्द को गले से लगाये बैठी है कि 
पूरा आसमान चाहिये     
या उस तक पहुंच जाने की
एक उडान बस
गहरे और हल्के पेंसिल से
बनाती हुई कई शेड्स
चमकते सूरज का

रंगना चाहती है
उन तितलियों को भी
जिन्हें नही मिला है रंग
कुदरत से
और वे दिन के उजाले में नही उडती

उडना भी 
पंक्षियो के बीच उन्मुक्त हो
गहरे आसमान की गहराई में 
माप लेना
जमीन और आसमान के बीच की
खालीपन को चंद रंगों से

उतारना कुछ रंग आसमान से भी
जो जमीन से गायब है अब
उन चेहरों को सजाना भी
जिन्हे बचपन ने बेरंग कर दिया था  !!

6 comments:

  1. vaah bahut sundar kalpna bahut achchi prastuti.

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  2. बहुत सुन्दर ... बेरंग में रंग भरना सहज नहीं पर हिम्मत है तो वो भी हो जायेगा

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  3. kanvas ko kavita me sahajta se utara hai....bahut achchha laga padhkar

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  4. sukhad sapnon kee udaan se behtar udaan koi nahee hotee ,udaan kee achhee abheevyaktee

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  5. सपनो की उडान को पंख देने होंगे…………बहुत सुन्दर भावाव्यक्ति।

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  6. बहुत सुन्दर संध्या ..हमेशा की तरह ...

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