जनतंत्र है बंधू

हर किस्म के फुल खिला करते है
चमन में खुशबू से ज्यादा
कांटे ही मिला करते है

ना हो उदास यहाँ
कही भी और
किसी भी भेष में
नारयण मिला करते है

जोश में यहाँ जहान कई खोते है
झंडे के पीछे
जीने के कई फंडे है

भेद भाव के नीति पर
जमीन और भाषा के बीच यहाँ
अजीबो-गरीब घमासान

लहलहाती कुर्सियों पर
सता के खेल है और
गरीबी में जलती पेट है

जनतंत्र है बंधू !!

7 comments:

  1. ना हो उदास यहाँ
    कही भी और
    किसी भी भेष में
    नारयण मिला करते है
    bilkul sahi kaha...

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  2. सटीक लिखा है ..समसामयिक रचना

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  3. सटीक लिखा है

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  4. ... बेहद प्रभावशाली सटीक अभिव्यक्ति

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