तेरा उगना और डूबना

सुबह से शाम हुई
कलरव में
देखते हुये
तुझें 

कई शाम
कंधो पर
लेकर बैठी है जो
आसमान
ओंस की मानिंद
काटी है यादें

कोई सीप
तुझ सा ना मिला
कि बन जायें
मोती

लहरों की
साजिश में
लौट जाता है वक्त  
किनारों से
ठोकर खाकर 

किनारे देखती रही हैं तुम्हें
सुबह और शाम में
उगते और डूबतें !! 

8 comments:

  1. कई शाम
    कंधो पर
    लेकर बैठी है जो
    आसमान
    ओंस की मानिंद
    काटी है यादें

    कोई सीप
    तुझ सा ना मिला
    कि बन जायें
    मोती ... bahut khoob

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  2. वाह क्या बात है बहुत खूब लिखा है आपने !!!

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  3. बहुत बढ़िया रचना ...हार्दिक बधाई स्वीकारे ..:)

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  4. लहरों की
    साजिश में
    लौट जाता है वक्त
    किनारों से
    ठोकर खाकर

    बहुत सुंदर...

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  5. बहुत सुंदर भावपूर्ण प्रस्तुति|
    गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें|

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  6. कोई सीप
    तुझ सा ना मिला
    कि बन जायें
    मोती

    बहुत बड़ी बात कुछ शब्दों में... वसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएँ...

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  7. कोई सीप
    तुझ सा ना मिला
    कि बन जायें
    मोती

    वाह वाह क्या बात है.....बधाई...

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