हम आसमान पर नही तो धरती पर....?

जमीन से निकलनेवाले
पेड-पौधो,कीडे-मकौडो की
कही कोई बात नही होती

कहाँ से आती है हरियाली और
कहाँ कहाँ है सुंदरतम चीजे
इसकी जानकारी कही कोई नही होती  

रोज धरती अपने जगह से
थोडा थोडा खिसक रही है
कही कोई चर्चा नही 

आसमान भी हररोज
थोडा कम नीला हो जाता है
इतनी बडी घटना पर भी 
रात की गहराई नही मापी जाती

रिश्तो में खुन कम
पानी ज्यादा भरने लगा है
और इसकद्र रोज थोडा
यह भी मरने लगा है

सभी भाग रहे वक्त की तरह
बिना सोचे 
परिवर्तन हमें किसी विनाश की संकेत दे रहे
पर
अनुमान लगाने से भी परहेज क्यो है
हम आसमान पर नही तो
धरती पर क्यो है ?

14 comments:

  1. विचारणीय पोस्ट ...

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  2. रोज धरती अपने जगह से
    थोडा थोडा खिसक रही है
    कही कोई चर्चा नही
    गहन गंभीर भाव ...

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  3. परिवर्तन हमें किसी विनाश की संकेत दे रहे
    पर
    अनुमान लगाने से भी परहेज क्यो है
    हम आसमान पर नही तो
    धरती पर क्यो है ?

    ....बहुत सार्थक और सटीक प्रस्तुति...

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  4. सचेत करती हुई सार्थक रचना ....

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  5. सही लिखा है आपने...
    कई बातें होती हैं..पर बात नहीं होती....अच्छी कविता

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  6. परिवर्तन हमें किसी विनाश का संकेत दे रहे, फिर भी हम जागे नहीं... सचेत करती रचना...

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  7. गहरी बातों को रेखांकित करती रचना । विचारोत्तेज़क प्रस्तुति संध्या जी

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  8. बेहतरीन प्रस्‍तुति
    कल 01/02/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्‍वागत है, कैसे कह दूं उसी शख्‍़स से नफ़रत है मुझे !

    धन्यवाद!

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  9. रिश्तो में खुन कम
    पानी ज्यादा भरने लगा है
    और इसकद्र रोज थोडा
    यह भी मरने लगा
    हम आसमान पर नही , तो
    धरती पर क्यो है.... ?
    गंभीरता से सोचने वाली विषय-वस्तु.... ??

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  10. हम्म्म्म

    सच है..खुद के सिवा अब कुछ दिखाई नहीं पड़ता किसी को...
    सार्थक रचना..

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