एक मुठ्ठी धूप में सूरज तन्हा

एक मुठ्ठी धूप में
सूरज तन्हा
आसमानी कंचन-किरणवाला
सबेरा
सूरजमुखी जैसा

ठंडी हवाओं में
पत्तियों की सरसराहट से होकर
गुजरती सांसे
बेआवाज
सन्नाटों पर फैला
पानी सा इक छुअन

पलकों पर सोया समंदर
और उसके गहराई में
डुबता नीला आसमान
तारों से सजी रात
तन्हाई से बचाती हुई चाँद को
टांकते जाती शब्दो से
रौंशन मुखडा को
टिमटिमाते अक्षरों से

वक्त के हाँडी मे
पकता महीन सेवईयाँ
जिसे हमसब को खाना होता है
खींच-खींचकर
पर दूँज की तरह मीठा नही होता

बेरोक-टोक चलती है घडियाँ
जिसके ऊपर
घोडे भी दौडते है
पर बिना लगाम
वे माँ की हाथ के तरह
खुबसूरत नही होते !!

5 comments:

  1. पलकों पर सोया समंदर
    और उसके गहराई में
    डुबता नीला आसमान
    तारों से सजी रात
    तन्हाई से बचाती हुई चाँद को
    टांकते जाती शब्दो से
    रौंशन मुखडा को
    टिमटिमाते अक्षरों से...waah

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  2. बढ़िया गीत .... होली की शुभकामना और बधाई ...

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  3. bahut sundar bhaavnaon ki ladiyan banaai hain.holi ki shubhkamnayen.

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  4. बेरोक-टोक चलती है घडियाँ
    जिसके ऊपर
    घोडे भी दौडते है
    पर बिना लगाम
    वे माँ की हाथ के तरह
    खुबसूरत नही होते ...

    बहुत खूब ... अलग से बिम्ब जोड़े हैं ...
    आपको होली की बहुत बहुत शुभ कामनाएं ...

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