चिराग‌‌ यूँ ही नही जला करते

 1.

छोटे तारे रोज देखते है
अपने अनंत आकाश से
चाँद के आगोश में
संवरते है रोज
फिर भी
टुटकर बिखर जाते है
मिट्टी की
सौंधी खुशबू की चाहत में !!

2.

चिराग यूँ ही नही जला करते
अंधेरे से दोस्ती रही होगी कभी !!

3.

बाजार एक सपना है
नये परिंदों के लिये
घोंसलों को मिटाया जा रहा है
चाँदी के चंद टूकडो के लिये !

4.

जाने वो कौन से मकाँ थे
टूटते चले गये
बिखरे गहन सन्नाटों के बीच
आज भी
इबारते जिंदा है और
उपजते है ख्वाब
किताबो की जमीन पर !!

5.

डाल डाल गया
पात पात डोला
परिंदें की चाहत रही
छाँव
पर वह बरगद ना मिला
जिसकी लटों से
भरी दोपहरी में
शीतलता टपकती थी !!

6.

इतना बरसा बादल कि
समंदर भी स्याही से
कुछ लिखता मिला !!

7.

साहिल पर आकर
कश्तियों का
डुबना भी खुब था !!

8.

 बचे रहने के लिये
जरूरी था कि
सबुत के तौर पर
सांसो की चीरफाड़ हो
और मुश्किल था
साबूत बच पाना !!

9.

मिटा मिटा के लिखना
और मिट मिट कर लिखना
कैसी दुश्वारियाँ है सांसो की !!

10.

एक जमीन हमनें ना बनाई
एक आकाश तूने ना बनाई
रिश्तों के सर जमीन पर
वे कौन से मकान थे
जो बनते चले गये !!
 

3 comments:

  1. डाल डाल गया
    पात पात डोला
    परिंदें की चाहत रही
    छाँव
    पर वह बरगद ना मिला
    जिसकी लटों से
    भरी दोपहरी में
    शीतलता टपकती थी !!
    अनुपम भाव संयोजन से सजी गहन भावभिव्यक्ति...

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  2. एक जमीन हमनें ना बनाई
    एक आकाश तूने ना बनाई
    रिश्तों के सर जमीन पर
    वे कौन से मकान थे
    जो बनते चले गये !!

    वाह सभी क्षणिकाएं बेहतरीन

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  3. क्या कहने
    बहुत बेहतरीन रचना...

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