बाज़ार की नज़र में

आसमान के नीचे की दुनिया सिमट गई थी
छ्तो की चौड़ाई बढती रही 
और परिंदों के परों पर उड़ान भारी था

पत्थरों से टकराते रहे
सम्वेदी तंतुयें 
प्यास बढ़ती रही और
पंख झड़ते रहे

बाजार की नजर में
दुनिया बिल्कुल गोल थी
और आदम जात एक वस्तु !!

5 comments:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    --
    आतिशबाजी का नहीं, ये पावन त्यौहार।।
    लक्ष्मी और गणेश के, साथ शारदा होय।
    उनका दुनिया में कभी, बाल न बाँका होय।
    --
    ஜ▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬●ஜ
    (¯*•๑۩۞۩:♥♥ :|| दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें || ♥♥ :۩۞۩๑•*¯)
    ஜ▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬▬▬▬▬●ஜ

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  2. bahut sundar ... diwali parv par hardik badhai ...

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  3. पत्थरों से टकराते रहे
    सम्वेदी तंतुयें
    प्यास बढ़ती रही और
    पंख झड़ते रहे

    संवेदनशील बात

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  4. बहुत सुंदर रचना
    क्या कहने


    पत्थरों से टकराते रहे
    सम्वेदी तंतुयें
    प्यास बढ़ती रही और
    पंख झड़ते रहे


    दीपावली की ढेर सारी शुभकामनाएं

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  5. शुक्रिया और आभार,आप सबको दीपावली की ढ़ेर सारी शुभकामनाएं!

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