तेरे शहर में

फख़्त
दो चार दिन की चाँदनी थी
और वक्त कातिल
शहर में हरशख़्स
यूँ ही तन्हा न था

एतवार अपने अक्स पर
क्यों ना करते
पर आइना शहर का
पुराना बहुत था

तेरा शहर मशहूर बहुत था
आते रहे हररोज़
तितलियों की चाहत में 
पर पहचान बदलकर  !!

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