आज नही तो कल तुम्हारी बारी है

नरम सुकोमल पंखों को
विस्फोट से
वे उड़ाते रहे उन्हें

धरती की नरम घासें
सूख कर पीली होती रहीं
कुर्सियों  की भार से

बंदूक से छलनी करते थे वे
और रुपयों को उछाल कर
पत्थर तोड़ेते थे  

गौरैयाँ दबोच ली जाती थी और
मासूम बलि चढ़ते थे
और माँ मिट्टी की घर थी

पर जिस दिन
निर्दोष लोगों की भूख
उछल कर महलों तक आयेंगी
उस दिन मत पुछना कि
गलती क्या थी हमारी

उनसे बचकर रहना
अय तंत्र
जिन्हें तुम नेस्तनाबूद किये जाते हो !

8 comments:

  1. http://bulletinofblog.blogspot.in/2012/12/2012-9.html

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  2. पर कहाँ लोग आगे की बात सोचते हैं ...गहन अभिव्यक्ति

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  3. बेहतरीन अभिव्यक्ति

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  4. बेहतर लेखन !!!

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  5. very nice.....expressions

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  6. नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ... आशा है नया वर्ष न्याय वर्ष नव युग के रूप में जाना जायेगा।

    ब्लॉग: गुलाबी कोंपलें - जाते रहना...

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