सामंती दीवारों के बीच

शहर का बाप नहीं होता
इनके फ़रिश्ते क़ानून तोड़ते है
कुतर दिये गए पंखो में
गौरैयां
उड़ने की कोशिश में फडफडाती हैं 
  
मांये दीवारों में चून्न दी गयी है
बावजूद इसके
वे फरिश्तो को दीवार फांदना सिखाती है
और गौरैयो को फडफड़ाना

सामंती दीवारों में
सिर्फ
धंसता है वक्त
फ़रिश्ते सपनें देखते हैं 
और गौरैयाँ आसमान तलाशती है !

6 comments:

  1. बहुत खूब ...

    ब्लॉग बुलेटिन: ताकि आपकी गैस न निकले - ब्लॉग बुलेटिन आज की ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  2. बहुत सुन्दर रचना | पढ़कर आनंद आया | आभार

    Tamasha-E-Zindagi
    Tamashaezindagi FB Page

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  3. गहन सोच को अभिव्यक्त करती सशक्त रचना !

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  4. आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 07-02 -2013 को यहाँ भी है

    ....
    आज की हलचल में .... गलतियों को मान लेना चाहिए ..... संगीता स्वरूप

    .

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  5. सच ... कोरा सच बिना लाग लपेट के ... चलने वाले चलते हैं ... भौंके वाले बस भौंकते हैं ...
    बहुत ही प्रभावी रचना ...

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