लहू के रंग

झाडू हाथ में थमा
उसे दश्त के हवाले कर दी

चिराग हांथो से छिनकर
सूरज को
रात के हवाले कर दी

उसकी बस्ती में
कोई आता जाता नहीं
उसकी कश्ती को मौजों के
हवाले कर दी

आसमान
सिकुड़ गया कबका
चाँद को
अंधेरो के हवाले कर दी

मौसमों को
क्या पता था कि
बादल सूख जायेंगें 
जमीन को
बंजर के हवाले कर दी

गुजरते वक्त में
उसने
खूब निभाया साथ अपनो का
लहू के रंग ने उसे
गैरो के हवाले कर दी !

चाहत जब शून्य से भर जाये

शून्य के आगे
और पीछे भी तो है कुछ
पर तू जहां है
वहाँ ना भरना बाकी है
और ना खाली होना

जब भी वह अपने
जगह पर थोड़ा खाली होती है
तब जलती है
कविताये शब्द शब्द 

जब वह भर जाना चाहती है
तो पिघल जाते है समस्त हिमखंड
और डूब जाते हैं महादेश  

पर इक ज़रा तेरे हो जाने में
क्या कुछ नहीं उगता
सूनी धरती के माथे पर

ओंस की नमी की तरह  
फैला हुआ है प्यासी जमीन पर !!

वे बेच रहे है आँख और पहाड़

कौन सा राष्ट्र
धर्मनिरपेक्षता के नाम पर जो 
धर्मो के बाजार की राजनीतिकरण है  
किस अनुशासन की बात करते है वे लोग
जहां ताख पर रखे नियम क़ानून को
तब उतारा जाता है
जब कोई गिद्ध या चील जाल में फंसते है 
  
चिंट्टियो के बिल में
झोंक देते है वे सारी उम्मीदें
जहां सिर्फ अन्धेरा है और कीड़े
उनके बीच अपनी मूंह खोलने वालो को
अपनी औकात खानी पड़ती है बेबसी में 

सुबह का सूरज देखने के लिए
उन्हें देखना होता है उनके शीशे में
और धुप को
अपने पूर्वजो की पूंजी बताते है वे
और बड़ी ही सहजता से निगल जाते है चाँद
कर देते है तारों की पूरी जमात को
अंधेरी रात के हवाले
चांदनी को लूटते है व्यवस्थापिका के नाम पर

साहब लानत है
जहां आम को आरी से काटा जाता है और
और कटहल चौराहें पर बड़ी ही ऊँची आवाज़ में
अपने काबलियत का परचन लहराता है
लाठी और सिक्को के जमीन पर 
मोटी चमड़ी होने के बावजूद
वह राष्ट्र को संबोधित करता है

अँधेरे में औरतें बच्चो को सुलाती है
कौन से कौम से आये है लूटेरे
जिनके चश्में में झांकना मुश्किल
माँये धरती हुई जाती है
बंजर
उसपर वे तेज़ाब का कुआँ खोदते है

बेच रहे हैं आँख और पहाड़
लूटकर मासूमियत
किसे देश कहे और किसे देश भक्त
क्या हम अपने बच्चो के उनकी अपनी आँख लौटा पायेंगे !




प्यासी चिडियां

उन शब्दों का क्या
जो कभी पेड़ या तने हुआ करते थे

वक्त ऐसा है कि
शब्द पत्थराने लगे है
शीतल छाँव के आभाव में
धरती सूखती जा रही है

आसमान बेबस है
निहारता है अब
धुप और छांव

क्षितिज के छोर पर
बैठी प्यासी चिडियां
सूखती नदी को पुकार रही है
वह कौन सा शब्द होगा
जिससे गंगा वापस आयेगी  !!