शब्द पन्नों के बीच सुबकते है

पन्ना पलट दो
अब
अक्षर बिखर जायेंगें
शब्द बचा लो
वरना
आसमान टुकड़ों में
बिखर जायेगा

सब्र उनका टूट चुका है
पहाड़ आज बिखरने लगे है
जो युगों रहे 
अडिग और अटल

मासूमियत
उन किताबो की तो देखो
जिन्हें वे पढ़ते हुये
बड़ी बेरहमी से पलटते रहे

वक्त सख्त रहा
किताब के उस हिस्से को तो पढो
जो अब तक मौन था
फट जाये
उससे पहले
इसे बचा लो !!


चल और अचल लम्हों के बीच जिन्दगी कुछ ऐसी है

दो-चार कदम पर था फूल-चमन 
दो-चार कदम पर वह भी थी
जीवन ठहरा, एक समंदर
दरिया की कहानी थी

दो-चार कदम पर थे चाँद-चांदनी
दो-चार कदम पर ही जुगनू थे
रौशन सूरज, फिर भी तन्हा
सितारों की कहानी थी

दो-चार कदम पर थे मंदिर-मस्जिद
दो-चार कदम पर, वे भी थे
सबसे ऊपर एक नाम था
पर अन्धो की कहानी थी

दो-चार कदम पर था सुबह-सवेरा
दो-चार कदम पर ही अंधियारा था
जलता सूरज, सुन्दर बहुत था
भटकन की कहानी थी

दो-चार कदम पर थे लोग-बाग़    
दो-चार कदम पर ही जंगल था
हरियाली थी बहुत सुहानी
पर मिटने की कहानी थी !

पर समंदर कहाँ है ?

रात की गहराई में
एक पुराने जर्जर किले से
एक परिंदा कूदता है
अद्वैत में और तड़पता है
जमीन बहुत सख्त है
जिस्म को खुरदुरा कर देती है
धायल पंखो से वक्त काटता है

बंद कमरों के झरोखें
नहीं खुलती हैं आसानी से
जकड़न है सदियों पुरानी 
पहचाने चेहरों पर गर्द जमी हुई है
और आइना धुंधला गया है

तोड़ना चाहता है वह
उन दीवारों को 
जहां उसे दफनाया गया था

उम्मीद की लहरें चाँद तारो को छूती है
पर जमीन और
आसमान के बीच की शुन्यता में 
यह तय नहीं कर पाता कि
उड़ान कितना बाकी है और लौटना कहां है ?

चारदीवारी की बीच बैठा परिंदा
परात में सज्जी पडी कई जोड़ी आँखों को देखता है
और सभी आँखें उसे देखती है
डूबना चाहता है 
पर समंदर कहाँ है ?