खो जायेंगे हम

चाहिये जो, दरवाजे नही खुलते 
कैसे पा लेंगे उसे
जो सड़क के बीचों बीच
किसी सुरंग मे खो गया है

आवाजें भरी पड़ी है 
गहन सन्नाटो के बीच
और वहाँ दर्द से बाहर नही है

डोर पर टिकी सांसें
ना जाने कब छूट जाये
खो जायेँगे हम
बिना चेहरा और बिना जिस्म

रोशनी की तलाश होगी और 
उम्मीद जिंदा रहेगी अंधेरे में भी
कुछ उजले-पीले एहसासों के बीच

गहरे अंधेरे में कब के उतरे बैठें हैं 
सबके सब,
पर कोई राह नही बताता पनाह लेना चाहते है
किसी ताबूत की शक्ल में

उम्मीद एक तलाश है
चाहत चट्टान
और मासूम उँगलियों की हड्डी घिसने लगी है !

बर्फ पिघलते कैसे

उन दरवाजो को तोड़ना संभव ना था 
जो उदार और शालीन दिखने वाले लोगों के बीच खुलती थी
ऊंचाई,ताकत, दंभ और ना जाने कितनी बारीक तहें थी
जहां चिंट्टियां रौंद दी जाती थी

ऐसे समंदर का क्या
जहां बड़ी मछलियाँ छोटी मछलियों को बेखौफ खाती थीं 
और उँगलियों पर लहरों को गिनना
एक आदत बन चुकी थी

चिंगारी
राख़ में ठंडी पड़ी मिलती
और हम
जमे बर्फ के वास्ते गर्मी तलाशते थे !