कभी कभी यूं ही बहते जाते शब्द

१.
मन सा आकाश
उड़ान परिंदों की उदास
सघन तारों के बीच
चाँद फिर भी तन्हा
एकांकी से भरा 
असंख्य प्रकाश वर्ष की दूरी पर
जिन्दगी पानी पर बहती जाती !
२.
छाया कही नहीं पृथ्वी पर 
रोज पत्तों के टूटने से 
आँखें धुंधली
और बच्चो की दुनिया के सपने 
सूखती बस्तों के बोझ तले  
उसपर मौसमो के तेवर रूखे ! 

३.
दहलीज के 

अंदर और बाहर मोटी मोटी लकीरों पर 
मासूम बच्चियों के लिए
बड़े ही सफाई से हिंसक सीमाये चित्रित रही
जिन्हें वे नाक कहते रहे !
 ४.
लकीरों में नश्तर जड़ें गए
मासूम लिबास कटती रही युगों
उम्मीद लहूलुहान रही 
हिंसक लिबास सफ़ेद मिले 
सबूत को ताबूत में सफाई से दफनाया गया
और भगवान पत्थर में स्थापित किये गये !
५.
शीशा टूटता रहा 
जब तुम्हारे अक्स से जुदा तस्वीर बनी
उंगलियाँ तेरी मेरी रूह थामें चलती थी
वह बचपन था
जहां माँ पिता जी चिड़ियों के साथ साथ जगते
और हम दिन भर तारे गिनते
और जिन्दगी को रौशनी की तरह देखते
किताबो के उजले पन्ने अब पीले पड़ चुके !

 ६.
अँधेरे से लड़ते रहे और 
हम भूल गए कि हमें रौशनी की तलाश है 
पाँव में फिसलन कैद थी और 
जमीन पर जीने के लिए चढ़ाई चढ़ना जरुरी था 
एक सांस आती और दूसरी सांस चली जाती यूं ही मां 
बहुत दूर 
कही रहती है वह चिंडिया जिसकी हमें तलाश है !