भीड़ बहुत है
सबने अपना अपना सामान बाँध लिया हैं
और जो छूट रहें है
उनका पता कही खो जायेगा गुमराह राहों के बीच
बहुत दूर जाना है
कही दूर मंजिल भी है
पर रास्तों का
कही कोई अपना ठिकाना भी तो नहीं है
वजह कुछ ऐसी है कि
सघन हताशा और निराशा के बीच सबको सफ़र करना है
घर के अन्दर कई दीवारे हैं
और उन दीवारों पर
तस्वीरें टिकती भी तो नहीं !
सबने अपना अपना सामान बाँध लिया हैं
और जो छूट रहें है
उनका पता कही खो जायेगा गुमराह राहों के बीच
बहुत दूर जाना है
कही दूर मंजिल भी है
पर रास्तों का
कही कोई अपना ठिकाना भी तो नहीं है
वजह कुछ ऐसी है कि
सघन हताशा और निराशा के बीच सबको सफ़र करना है
घर के अन्दर कई दीवारे हैं
और उन दीवारों पर
तस्वीरें टिकती भी तो नहीं !
इस हाताषा और निराशा में तस्वीरों का ध्यान भी कहाँ रहता है ... सफ़र निरंतर हो सके यही काफी है ....
ReplyDeleteshukriya aur aabhar !
Deleteआपकी इस पोस्ट को शनिवार, १३ जून, २०१५ की बुलेटिन - "अपना कहते मुझे हजारों में " में स्थान दिया गया है। कृपया बुलेटिन पर पधार कर अपनी टिप्पणी प्रदान करें। सादर....आभार और धन्यवाद। जय हो - मंगलमय हो - हर हर महादेव।
ReplyDeleteshukriya aur aabhar !
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (14-06-2015) को "बेवकूफ खुद ही बैल हो जाते हैं" {चर्चा अंक-2006} पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
shukriya aur aabhar !
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