सरकार की सल्तनत में

आरजूओं को
रात में ढल जाने दो
सुबह की इन्तजार में
ताकि
कुछ शब्द जलते रहे
और कुछ शब्द बाकी रहे !

चमन हो और
ख्वाब भी हकीकत हो
यह मुमकीन नही
रात की विरानगी में
जुगनूओ का डेरा रहे
ताकि
चांद कुछ बाकी रहे !

ऐसी उम्मीद कि
लाठी मिले
मुफ़लिसी को
ताकि
उनकी आंख खुलती रहे
और सरकार की सल्तनत में
अल्पसंख्यकों की नींद सलामत रहे !

4 comments:

  1. बहुत बढ़िया प्रस्तुति !
    मेरे ब्लॉग पे आपका स्वागत है !

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  2. बहुत खूब ... सरकार की सल्तनत भी तो बरकार तभी तक है ...

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