तब माँ बहुत याद आती है

चाँदनी के वीराने में
दर्द के सिरहाने पर
जब कोई तितली उडती है
और कंधो के आस पास मंडराती है
तब माँ बहुत याद आती है

उडती है खुश खुश
बेहिसाब गमों के बीच
एक तितली
फड़फड़ाती पंखो से जब कही कुछ बोल जाती है 
तब माँ बहुत याद आती है

वह बैठती है
पलकों पर सुबह सबेरे 
अश्को की नमी मे
मायूसी के मौसम में 
जब पंखो से रंग उसके झर जाते है
तब माँ बहुत याद आती है

पूजा की थाली में
माली के फूलों की खुशबू पर
जब कोई तितली मंडराती है 
तब माँ बहुत याद आती है
 
फूल की कशिश और  
खुशबूओं की चाहत में       
बेटियों के स्पर्श से जब
कोई तितली रंग बिरंगी हो जाती है 
तब माँ बहुत याद आती है
 
सपनों के रंगो से
दिन-रात की चादर पर
जब कोई तितली नया रंग भर जाती  है
तब माँ बहुत याद आती है

प्यार की धून पर
तितली के थिरकन से
मन फूल सा खिल जाता है
और तब वह
दूर दूर तक जाकर लौट आती है
तब माँ बहुत याद आती है !!
 

5 comments:

  1. वाआह बहुत खूब.... माँ इस कायनात का सबसे अनमोल तोहफा हैं...

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  2. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन बार-बार बहाए जाने के बीच ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...

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  3. ऐसा कमाल का लिखा है आपने कि पढ़ते समय एक बार भी ले बाधित नहीं हुआ और भाव तो सीधे मन तक पहुंचे !!

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