वह गुनाह की तरह पन्नों में दर्ज होती गई

चाँद के दरवाजे पर
करवट बदलती रात
दाग चेहरे पर कैसे पडा उसके
ना उसे,ना अंधेरे को मालूम था
और ना ही चाँदनी को

फ़िर क्यों उसे याद रह गई
चंद बातें
कहानी में पतंग
और अंधेरे में हंसने वाली लडकी
तपते रेत पर मृग-मरीचिका थी और वही है
जिन दिनों कहानी लिखी जा रही थी
वह गुनाह की तरह
पन्नों में दर्ज होती गई
और अक्षरों में वह ताकत थी कि
उन्होंने जिस्म पहना दिया

अब बात रोने की है तो
चाँद पर ना रोये कोई
ना ही चाँद दाग़दार है
होगी कहानियां कई
चाँद पर
वह तो अकेला है तन्हा है
युगों से
पर सूरज के आस पास
गोल चक्कर काटता है

खींच लेता है वह
थोडा सा जमीन और आकाश
जहां वह तारे की शक्ल में टिमटीमाता है रोज
समन्दर शांत भाव से करवट बदलता है
उठता है तो उफ़नता है अकसर
और पछतावे के आग से भर जाता है

कई कई कवितायें एक साथ
स्वर-लहरियॊं मे गाती हैं
उसके रोने पर
कई फ़ूल गिर जाते हैं एक साथ
पर उसे यह नही पता कि
होंगे लाखों लोग ऐसे
जो भूख लगने पर हासिल करते हैं खाना
पर वह एक है
जो अपनी जिस्म में
सुरमयी शाम है ! 


2 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (06-10-2018) को "सुनाे-सुनो! पेट्रोल सस्‍ता हो गया" (चर्चा अंक-3116) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    ReplyDelete