मजमा है
निराशा और आशा का
कस्बा में सुबह से ही
चहल पहल बढ गई है
हवा पतियों पर झुल रही है
शाखो पर कोंपले
जाने पहचाने शक्लों से
गुफ्तगू कर रहें है
ऋतुओं के आने का वक्त तय है
वे बेवक्त नही आती
सूरज शाम के आते ही डुब जाता
समंदर में
अंधेरे ढुंढ लेते तारों को
रात गहराने पर
मजमा में आये लोग
कतार में है
उन्हे चलना है अभी
दूर तक
जहाँ सूरज डूबेगा
शाम का होना तय है !!!
निराशा और आशा का
कस्बा में सुबह से ही
चहल पहल बढ गई है
हवा पतियों पर झुल रही है
शाखो पर कोंपले
जाने पहचाने शक्लों से
गुफ्तगू कर रहें है
ऋतुओं के आने का वक्त तय है
वे बेवक्त नही आती
सूरज शाम के आते ही डुब जाता
समंदर में
अंधेरे ढुंढ लेते तारों को
रात गहराने पर
मजमा में आये लोग
कतार में है
उन्हे चलना है अभी
दूर तक
जहाँ सूरज डूबेगा
शाम का होना तय है !!!