हमसफ़र शब्द
सुलगते एहसास में शब्दों के जिस्म पर एक धुँआ सी है जिंदगी !!
बेबसी इस पार जितनी
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नदी और घास सूखती रहीं और कही इनसे दूर हमसब अपने हिस्से के धूप पर रोते रहे तभी तो खोया है जंगल खोयी है मीट्टी और खोयी है ख़ुशबू धरती की एक भू...
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करीब उनके चाँद भी शरमाया है
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जुनूने-तख़्त पर बैठा रहा वो सजाते रहे, सँवारते रहे ख़ामोशी में आहट इसके टूट जाने की रही यक़ीन मानो दोस्त जब भी पाँव ज़मीन पर रखा कुछ-ना-कुछ ...
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एक दिन तुझसे छूट जाती है
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जहाँ से गुजरते हैं वही ज़रा-ज़रा सा छूट जाते हैं मुद्दत हुई शब्द-शब्द तुझे पढ़ना मंज़िल के क़रीब आकर भी अक्षर भी थोड़े-थोड़े छूट जाते हैं, ...
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तुम चाहो तो
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चाहो तो ख़ुशबू एहसास और चाँद बना दो तुमसे होकर गुज़र जाऊँ और तुम एहसास ख़ुशबू और चाँद से भर जाओ ना ‘तुम’ जिस्म और ना ‘मैं’जिस्म हम...
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उदास दिनों में क्षणभंगुर होते सबके सब
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उदास दिनों में काग़ज़ पर उँगलियाँ काँपने लगती हैं समंदर बनकर आँखें डूब जाती हैं होंठ कुछ कहने से पहले कपकपा जाते हैं...
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ईमानदारी की मोल मिट्टी सी
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जब गरज थी, तब सब बड़ी ही ख़ुशी से मिले ख़्वाहिश पूरी हुई उसके दरवाज़े पर वह मसीहा ना था एक ईमानदार बेटा था दादा जी का गरज पूरी हुई सब ...
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कुछ लोग हैं जो भीड़ की आवाज़ बनने में लगे हैं
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कई बार दुनिया मेरे दादा जी के बाज़ार जितना सिमटी नज़र आती है ऐसा लगता है कि उस बाज़ार में सब तरह के लोग ...
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