मोह की क्षणभंगुरता में

वीरानें में लटकती सांसों को
घुंघरू की तरह प्रतिध्वनित होना था 
जिंदगी दो चार कदम पर
गहरी कुआँ थी

वक्त बेवक्त नमी सूखती रही 
प्यास प्याउ पर बिखरी
तन्हाई को टटोलती रही

सन्नाटे गहराते रहे
असंख्य यादों से विदा लेते वक्त
आंखों को शुन्य में छोड़ना
विवशता रही सांसों की

आना और जाना 
अकेले रास्तों का सफ़र था
फिर भी रिश्तों की जिस्म पर
मोह की क्षणभंगुरता में
सांस-सांस मरते देखना
जीजिविषा प्राण की रही    

आत्मगत से वस्तुगत
हो जाना ही सत्य था !!

बनी दुनियाँ तब खुशबू बहुत थी

बिखरना
नसीब फूलों का
माली नही वे कि सँवार देंगें
हौसलों को उड़ान देंगें

मंझधार में
छोड़ रहे कस्तियों को
बुझाते रहें रौशनी
टटोलते हुये अंधेरों को

बाबूल से
बबुल हुये वे कब
कंटीली ढाँचों के बीच 
बसा फूल का शहर  

बनी दुनिया तब 
खुशबू बहुत थी !

रंग बिरंगें पंखों से

उन परिंदों को देखा
जो आकाश
नाप लेना चाहते थे
रंग बिरंगे पंखों से

पर मासूम परिंदों को
एहसास ना था कि
नीले आसमान में सुराख है
और वे विलुप्त हो जायेंगे
एकदिन

ओ नीली छतरी वाले
रहस्य को तोड़ दे
मासूम परिंदों की उडान को
सतरंगी बना !

उम्मीद से है दरख़्त अब

ठहरा हुआ आसमान
गहराती हुई पृथ्वी
सबकुछ बिखरता हुआ 

पिघलता हुआ बर्फ
हम कहाँ और कैसे ठहरे
सवाल ही रहा

ऐसी उफान नदियों में कि
सूखती रही उम्मीद 
लहरों के संग 

जंग में सियासत या
सियासत में जंग
बदल रहा है सबकुछ
अपने धूरी पर  

आसमान नीला रहे और
उडान मिलें परिंदो को
उम्मीद से है दरख्त अब !!

मुश्किल बस इतना सा

मुश्किलों से खेलता 
रोता बच्चों की तरह 
दिखता
उसके आंखो में खुदा 
मानो वह बचपन का
छूटा कोई ख्याल   

मुश्किल यह है कि
मुश्किल में सख्त नही वह 
पर उम्र और समय से परे 
बहुत आसान 
क्योंकि बुध्दिजीवी है
वह जी लेता हैं सबकुछ 
पता है उसे
चाहता क्या है

चाहत उसकी
बंद मुठ्ठियों में खुला आसमान 
जिसपर खींच रखी है उसने
चंद लकीरें ख्वाहिशों की 
इंद्रधनुषी
सूरज मद्धम नही होता उन रंगों की

मुश्किल बस इतना सा कि
ख्वाब उसका अपना सा है
जो सोने नही देता !!