मोमबत्तियां

सच स्याह रात थी
सुबह ना था

उम्मीद शीतलता की
रौशनी के बीच कटने लगी थी

जमीन तो था
पर नमी ना था

जहां नदी थी
वहां रुदन बची थी

रोज सबेरे
उदास सूरज
चमड़े के बीच जलता था

आवाजें ऐसी थी कि
स्पर्श अनाथ थी

गहन अंधेरे में
मोमबत्तियाँ जलती थी !