सरकार की सल्तनत में

आरजूओं को
रात में ढल जाने दो
सुबह की इन्तजार में
ताकि
कुछ शब्द जलते रहे
और कुछ शब्द बाकी रहे !

चमन हो और
ख्वाब भी हकीकत हो
यह मुमकीन नही
रात की विरानगी में
जुगनूओ का डेरा रहे
ताकि
चांद कुछ बाकी रहे !

ऐसी उम्मीद कि
लाठी मिले
मुफ़लिसी को
ताकि
उनकी आंख खुलती रहे
और सरकार की सल्तनत में
अल्पसंख्यकों की नींद सलामत रहे !

उन दीवारों पर

भीड़ बहुत है
सबने अपना अपना सामान बाँध लिया हैं
और जो छूट रहें है
उनका पता कही खो जायेगा गुमराह राहों के बीच


बहुत दूर जाना है
कही दूर मंजिल भी है
पर रास्तों का
कही कोई अपना ठिकाना भी तो नहीं है
वजह कुछ ऐसी है कि
सघन हताशा और निराशा के बीच सबको सफ़र करना है

घर के अन्दर कई दीवारे हैं
और उन दीवारों पर
तस्वीरें टिकती भी तो नहीं !

तेरे महफ़िल में

त्रिकोण है कोई
धटनाओ के अंतराल के बीच
एक कोने का ओरछोर मिले
और दूसरे कोने को समझ पाते
इससे पहले
तीसरे कोने पर कोई दर्द
टंगा मिलता


मजबूरी यह थी कि
एक कोने से दूसरे कोने तक
हम सीधे सीधे ही जा सकते थे
चलने की चाल चाहे जो भी अख्तियार करते
पर सीधे सीधे चलकर ही
दूसरे कोने तक पहुँचना संभव था

तीसरे कोने तक पहुँचने पर
वक्त हमें माफ़ नहीं करता था
और इसतरह
हम धरासायी होते रहे
तेरे महफ़िल में
और तूने आवाज़ तक ना सुनी !

सुनहरे स्वपन में तू

बारिश नहीं बरसेगी
रातें नहीं तरसेंगी 
नींद अपने स्वपन में उतरेगी

उम्मीद
किसी डाल की चिड़ियाँ नहीं
जो फुर्र से उड़ जाए
एक पल या दो पल बैठकर

रोकना है तो रोक लो
अनंत असंख्य जघन्य
नुकीले कीलों को गड़ने से

दीवारों में कैद साँसें
अब बगावती है
टूट जायेंगी दीवारे
एक अदद खिड़की के लिए

मंजिल
अपना रास्ता
आखिर तलाश ही लेती है !