दुनिया की तमाम धर्मों के चेहरे
अगर आकाश और धरती की तरह हो जाये
तब भी
हरे लहलहाते जमीन पर
गेहूं की बालियों में
चांद का चेहरा होगा
और उसकी पूजा
इंसानियत बचाने के लिये है
इश्क अगर जिस्म है
तो रुह से निकलने वाली दुआ
मजलूमों के लिये होगी
उडती चादर पर
खुशबू प्रेम की है
हमारा अस्तित्व
पेड की जडों में है
और मिट्टी से तर-बतर
पहचान की कोई नाम नही होती
और, जैसे किताब की कोई उम्र नही
चाहे तुम जहां से उगो
पर जड तो मिट्टी का है
लिबास हो या चेहरा
दोनों
उम्र काटते हैं यहां!