तुम जिन्दा रहो

तमाम यादों से बनी
एक रात को  
सपनों ने उसे बाहर किया तब
समन्दर में लहरें बहुत तेज
उठ-उठकर ठीठक रहीं थीं तब
वही किनारे पर बैठी हुई बची जिन्दगी ने
उसे नई सुबह का इंतजार करने को कहा

रौशन जहान में
माना की सितारे टूटते भी हैं

तुम जिन्दा रहो
उम्मीद का क्या
बनता और बिगडता भी है
पर याद उस दीपक की रखो
गहरे अंधेरें में भी
जो तुम्हें जीने का हौसला देता है ! 

एक दीपक जो रौशन रहा


घुप अंधेरे को
तलाश
एक सितारे की थी
पर वह हमेशा टूटता मिला

एक दीपक जलता है
रात भर
रौशन जमाने में
कौन सा अंधेरा था
जो दीप से रौशन रहा

हम बुझ जाये कि
मिट जाये
ये सवाल हमेशा दो तरफ़ा रहा
जैसे रात के बाद
दिन या दिन के बाद रात हुआ

सफ़र लम्बी है
अकसर सुनने को मिला
जिस्म के मिटते ही
मंजिल का गुमान ना रहा

है कोई जो साथ चलेगा
ताउम्र
हर एक की लिबास
यहां टुकडा-टुकडा मिला