जहाँ से गुजरते हैं
वही ज़रा-ज़रा सा छूट जाते हैं
मुद्दत हुई शब्द-शब्द
तुझे पढ़ना
मंज़िल के क़रीब आकर भी
अक्षर भी थोड़े-थोड़े छूट जाते हैं,
अय ज़िंदगी
सागर है
लहरें हैं
जब तक किनारों पर
सफ़ेद चोले में लिपटी जिस्म भी
तुम्हारे क़रीब आकार
एक दिन तुझसे छूट जाती है ।