जहाँ से गुजरते हैं
वही ज़रा-ज़रा सा छूट जाते हैं
मुद्दत हुई शब्द-शब्द
तुझे पढ़ना
मंज़िल के क़रीब आकर भी
अक्षर भी थोड़े-थोड़े छूट जाते हैं,
अय ज़िंदगी
सागर है
लहरें हैं
जब तक किनारों पर
सफ़ेद चोले में लिपटी जिस्म भी
तुम्हारे क़रीब आकार
एक दिन तुझसे छूट जाती है ।
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार(२९-०३-२०२१) को 'एक दिन छुट्टी वाला'(चर्चा अंक-४०२०) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
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अनीता सैनी
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteरंगों के महापर्व होली की हार्दिक शुभकामनाएँ।
मुग्ध करती रचना - - होली की शुभकामनाओं सह।
ReplyDeleteगहन , और मार्मिक प्रस्तुति
ReplyDeleteभावपूर्ण, दार्शनिक अभिव्यक्ति के लिए हार्दिक साधुवाद!
ReplyDeleteसागर है
लहरें हैं
जब तक किनारों पर
सफ़ेद चोले में लिपटी जिस्म भी
तुम्हारे क़रीब आकार
एक दिन तुझसे छूट जाती है ।
होली की हार्दिक शुभकामनाएँ!--ब्रजेंद्रनाथ