सुलगते एहसास में शब्दों के जिस्म पर एक धुँआ सी है जिंदगी !!
चाहो तो
ख़ुशबू
एहसास
और चाँद बना दो
तुमसे होकर गुज़र जाऊँ
और तुम
ख़ुशबू और
चाँद से भर जाओ
ना ‘तुम’ जिस्म
और ना ‘मैं’जिस्म
हमारा खोना क्या
और पाना क्या
नदी और पुल का प्रेम
ईश्वरीय प्रेम है ।
सुन्दर सृजन।
जी नमस्ते, आपकी लिखी रचना आज शनिवार 9 जनवरी 2021 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन " पर आप भी सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद! ,
सुंदर दार्शनिक कविता...
उत्कृष्ट प्रस्तुति ।
वाह बहुत खूब।सुंदर सृजन।
सुन्दर सृजन।
ReplyDeleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना आज शनिवार 9 जनवरी 2021 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन " पर आप भी सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद! ,
सुन्दर सृजन।
ReplyDeleteसुंदर दार्शनिक कविता...
ReplyDeleteउत्कृष्ट प्रस्तुति ।
ReplyDeleteसुन्दर सृजन।
ReplyDeleteवाह बहुत खूब।
ReplyDeleteसुंदर सृजन।