जुनूने-तख़्त पर
बैठा रहा वो
सजाते रहे, सँवारते रहे
ख़ामोशी में आहट
इसके टूट जाने की रही
यक़ीन मानो दोस्त
जब भी पाँव ज़मीन पर रखा
कुछ-ना-कुछ टूटता रहा
बहुत मुश्किल से, होश को संभाला है
छोड़ दिया है अब, नशेमन होना
या रब तेरे आग़ोश में
ना ज़मीन के रहे और ना ही आसमान के
भटके बहुत दश्त में तेरे
चमन में गुल से ज़्यादा
काँटें भी मिले
अब जबकि होश आया है
रु-ब-रु उनके चाँद भी शर्माया है
छोड़ दी है तेरी तलब
क़सम से
क़रीब उनके सिर्फ़ क़यामत तारी है
इश्क़ में उनके अब
ख़ाक होने की बारी है।
वाह - क्या बात है
ReplyDeleteबहुत सुन्दर।
ReplyDeleteछोड़ दी है तेरी तलब
ReplyDeleteक़सम से
क़रीब उनके सिर्फ़ क़यामत तारी है
इश्क़ में उनके अब
ख़ाक होने की बारी है।
क्या गज़ब लिखा है ।
क्या ये ज़िन्दगी है
जो सब पर
कुछ न कुछ तारी है
न जाने क्यों
कर रहे इन्तज़ार
और कह रहे कि
अब ख़ाक होने की
बारी है ।