सालो तक
एक नज़्म के साये में
पनाह ले रखी थी
नींद बड़ी ही मिठ्ठी थी
थपकियां उसकी
सपनों के दरवाजे खोलती थी
एक दिन
दरिया ने काट दिया
पूरा का पुरा जमीन
नज़्म दफ़न हो गयी थी
इंच इंच मौत के बीच
दलदल में धंसती हुई
कई ज्वालामुखियों के बीच
छूटी हुई कोई रात थी
ख़ाक हो गयी थी गहरे वीरानें में
उन नज़्मों का क्या
जिनका कोई अपना जमीन
कही और कभी ना मिला
जिनकी तलाश मे
वे सपना ही रही
समंदर उफनता रहा
जख्म किनारों को मिला
जिन्दगी ने, अंतिम वार तक
बचाये रखी थी सांसे !
एक नज़्म के साये में
पनाह ले रखी थी
नींद बड़ी ही मिठ्ठी थी
थपकियां उसकी
सपनों के दरवाजे खोलती थी
एक दिन
दरिया ने काट दिया
पूरा का पुरा जमीन
नज़्म दफ़न हो गयी थी
इंच इंच मौत के बीच
दलदल में धंसती हुई
कई ज्वालामुखियों के बीच
छूटी हुई कोई रात थी
ख़ाक हो गयी थी गहरे वीरानें में
उन नज़्मों का क्या
जिनका कोई अपना जमीन
कही और कभी ना मिला
जिनकी तलाश मे
वे सपना ही रही
समंदर उफनता रहा
जख्म किनारों को मिला
जिन्दगी ने, अंतिम वार तक
बचाये रखी थी सांसे !
नज़्म भी तो सांस ही है ... धीरे धीरे तबाह होती हुयी ...
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