बेबसी इस पार जितनी



नदी और घास सूखती रहीं
और कही इनसे दूर
हमसब अपने हिस्से के धूप पर रोते रहे

तभी तो खोया है जंगल
खोयी है मीट्टी
और खोयी है ख़ुशबू धरती की

एक भूख ने
दूसरे भूख को खाया है बारी-बारी
पत्थर के ज़मीन पर
घासें नहीं उगा करती
इस तरह कुछ
टुकड़ा टुकड़ा हो जाती है धरती
लाख आईना सूरत दिखाये
पर उसे तो
पत्थर की ठोकर से टूट जाना होता है
बेबसी इस पार जितनी
उसपार भी उतनी ही है

टूटना
मिट्टी को खोना है
मिट्टी में मिलना
खोने के बाद ही होता है।

करीब उनके चाँद भी शरमाया है

जुनूने-तख़्त पर
बैठा रहा वो
सजाते रहे, सँवारते रहे
ख़ामोशी में आहट
इसके टूट जाने की रही
यक़ीन मानो दोस्त
जब भी पाँव ज़मीन पर रखा
कुछ-ना-कुछ टूटता रहा

बहुत मुश्किल से, होश को संभाला है
छोड़ दिया है अब, नशेमन होना
या रब तेरे आग़ोश में
ना ज़मीन के रहे और ना ही आसमान के

भटके बहुत दश्त में तेरे
चमन में गुल से ज़्यादा
काँटें भी मिले
अब जबकि होश आया है
रु-ब-रु उनके चाँद भी शर्माया है
छोड़ दी है तेरी तलब
क़सम से
क़रीब उनके सिर्फ़ क़यामत तारी है
इश्क़ में उनके अब 
ख़ाक होने की बारी है। 

एक दिन तुझसे छूट जाती है

जहाँ से गुजरते हैं
वही ज़रा-ज़रा सा छूट जाते हैं

मुद्दत हुई शब्द-शब्द
तुझे पढ़ना
मंज़िल के क़रीब आकर भी
अक्षर भी थोड़े-थोड़े छूट जाते हैं, 
अय ज़िंदगी

सागर है
लहरें हैं
जब तक किनारों पर
सफ़ेद चोले में लिपटी जिस्म भी
तुम्हारे क़रीब आकार
एक दिन तुझसे छूट जाती है ।

तुम चाहो तो

चाहो तो 

ख़ुशबू 

एहसास

और चाँद बना दो 

तुमसे होकर गुज़र जाऊँ 


और तुम 

एहसास 

ख़ुशबू  और 

चाँद से भर जाओ 


ना ‘तुम’ जिस्म 

और ना ‘मैं’जिस्म

हमारा खोना क्या 

और पाना क्या 

 

नदी और पुल का प्रेम

ईश्वरीय प्रेम है ।