एक चिड़ियाँ आती है
और मुंडेर पर तकती सूनी आंखों को
सरकार की भाषा समझाती है
आंखें गंगा की तरह सूख जाने वाली है
सोयी हुई है सरकार
कब जगेगी
नगे धड़ो के लिये क्या?
सरकार अपने मुँह पर कालिख पोतेगी
या सिर के बदले सिर लायेगी
चेहरे की झुर्रियो में दर्द से कराहती
बची सांसो की चीत्कार छुपी है
क्या न्याय ?
अब भी आंख पर
पट्टी बांधकर सोयेगी!!
और मुंडेर पर तकती सूनी आंखों को
सरकार की भाषा समझाती है
आंखें गंगा की तरह सूख जाने वाली है
सोयी हुई है सरकार
कब जगेगी
नगे धड़ो के लिये क्या?
सरकार अपने मुँह पर कालिख पोतेगी
या सिर के बदले सिर लायेगी
चेहरे की झुर्रियो में दर्द से कराहती
बची सांसो की चीत्कार छुपी है
क्या न्याय ?
अब भी आंख पर
पट्टी बांधकर सोयेगी!!
तस्मात् युध्यस्व भारत - ब्लॉग बुलेटिन आज की ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteबहुत सही बात कही है आपने .सार्थक अभिव्यक्ति मोहन -मो./संस्कार -सौदा / क्या एक कहे जा सकते हैं भागवत जी?
ReplyDeleteइस पट्टी को हाथ आगे बढा के खींचना होगा अब ...
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