आँगन में तुलसी मुरझाई हुई थी
पदचिन्हों के पीछे कही कोई
आवाज शेष नही थी
और दहलीज से पार
कही कोई महफूज शाखें नही बची थी
घटना कुछ ऐसी थी कि
ख्वाब से बाहर आते ही
चादर पर
सिलवटों का दिखना और
पृष्टभूमि से आती हुई
बिना सुरताल की आवाज का
कानों से टकराने जैसा था
कही कोई सपाट
और सीधा रास्ता नही था
मासूम चिंट्टियों को बाहर आने के लिए
सारे रास्ते बंद किये जाते रहें थे अबतक
बारिश में
बंद दरवाजों से
जब भी वे बाहर आती थी
दीवारों पर
सीलन साफ नजर आता था !
पदचिन्हों के पीछे कही कोई
आवाज शेष नही थी
और दहलीज से पार
कही कोई महफूज शाखें नही बची थी
घटना कुछ ऐसी थी कि
ख्वाब से बाहर आते ही
चादर पर
सिलवटों का दिखना और
पृष्टभूमि से आती हुई
बिना सुरताल की आवाज का
कानों से टकराने जैसा था
कही कोई सपाट
और सीधा रास्ता नही था
मासूम चिंट्टियों को बाहर आने के लिए
सारे रास्ते बंद किये जाते रहें थे अबतक
बारिश में
बंद दरवाजों से
जब भी वे बाहर आती थी
दीवारों पर
सीलन साफ नजर आता था !
बारिश का मौसम और सीलन के निशान .............बहुत अच्छे । सुंदर अभिव्यक्ति ...जारी रहें । शुभकामनाएं
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (26-07-2014) को ""क़ायम दुआ-सलाम रहे.." (चर्चा मंच-1686) पर भी होगी।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
भावो को खुबसूरत शब्द दिए है अपने....
ReplyDeleteजाने कब से सूने, बेमतलब गुजरते लम्हों का अच्छा खाका खींचा आपने ।
ReplyDeletesundar rachna
ReplyDeleteबहुत ही उत्कृष्ट
ReplyDeleteNihshabd......
ReplyDeleteमासूम चिंट्टियों को बाहर आने के लिए
ReplyDeleteसारे रास्ते बंद किये जाते रहें थे अबतक
........................................।
ज़िन्दगी यही तो है ... सीलन भरी दिवार .. अपनी ही साँसों से टकराना ...
ReplyDeleteमासूम चिंट्टियों को बाहर आने के लिए
ReplyDeleteसारे रास्ते बंद किये जाते रहें थे अबतक
बेवजह आदमी कहाँ कहाँ किन किन ख्यालों से गुजर जाता है , बेहतरीन प्रस्तुति
वाह !बेहद खूबसूरत !
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