लिखता मन
पढता तन
सफ़र में
एक परिंदा
पेड की शाख पर बैठा
इंतजार करता
भोर की
अंधेरे में भटकी सुबह
सिर्फ़ नारंगी होगी
इश्क सफ़ेद चादर सी
बात खत्म होगी
कुछ इस तरह
जिस्म से
रुह की रिहाई पर !
पढता तन
सफ़र में
एक परिंदा
पेड की शाख पर बैठा
इंतजार करता
भोर की
अंधेरे में भटकी सुबह
सिर्फ़ नारंगी होगी
इश्क सफ़ेद चादर सी
बात खत्म होगी
कुछ इस तरह
जिस्म से
रुह की रिहाई पर !
बहुत ही गहरा ...
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (28-11-2018) को "नारी की कथा-व्यथा" (चर्चा अंक-3169) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी