तुम चाहो तो

चाहो तो 

ख़ुशबू 

एहसास

और चाँद बना दो 

तुमसे होकर गुज़र जाऊँ 


और तुम 

एहसास 

ख़ुशबू  और 

चाँद से भर जाओ 


ना ‘तुम’ जिस्म 

और ना ‘मैं’जिस्म

हमारा खोना क्या 

और पाना क्या 

 

नदी और पुल का प्रेम

ईश्वरीय प्रेम है ।

8 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (10-01-2021) को   ♦बगिया भरी बबूलों से♦   (चर्चा अंक-3942)   पर भी होगी। 
    -- 
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
    --
    हार्दिक मंगल कामनाओं के साथ-    
    --
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 
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  2. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना आज शनिवार 9 जनवरी 2021 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन " पर आप भी सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद! ,

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  3. सुंदर दार्शनिक कविता...

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  4. उत्कृष्ट प्रस्तुति ।

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  5. वाह बहुत खूब।
    सुंदर सृजन।

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