वर्षों तक एक ही शब्द के जिस्म में पनाह ले रखी थी
और बाहर महंगाई काट रही थी अक्षरों को
पन्नों पर स्याही बिखरने लगा था और हम थे कि
शुतुर्मुग की तरह
तुफान न होने की सम्भावाना को बनाये रखने के लिये
सिर छुपाये बैठे थे
कहर कुछ इसतरह बरपा था कि
सम्वेदनायें शाखो से कट कटकर गिर गई थी और
हम ठूंठ पेड़ को
समझ बैठे थे अपना घर
पन्नों के हिस्से में थी प्यास जो खाली था
उसे पढने के लिये ज्ञान की नही
बल्कि दिल की जरुरत थी
वह घर जो सफ़र में छूट गया था अकेला
अब वह किताबों से भरा पड़ा है
और हम भटक रहें शब्दों के भीड़ में
उसका मिलना
किताबो के बीच सूखें फूल की खुशबूओ की तरह है
जिसे ना कोई किताब
ना वक्त ही कैद कर पाया
वह उड़ता रहा हम भटकते रहे
और अब कैद में हैं
सजे-सँवरे किताबों के बीच !!
और बाहर महंगाई काट रही थी अक्षरों को
पन्नों पर स्याही बिखरने लगा था और हम थे कि
शुतुर्मुग की तरह
तुफान न होने की सम्भावाना को बनाये रखने के लिये
सिर छुपाये बैठे थे
कहर कुछ इसतरह बरपा था कि
सम्वेदनायें शाखो से कट कटकर गिर गई थी और
हम ठूंठ पेड़ को
समझ बैठे थे अपना घर
पन्नों के हिस्से में थी प्यास जो खाली था
उसे पढने के लिये ज्ञान की नही
बल्कि दिल की जरुरत थी
वह घर जो सफ़र में छूट गया था अकेला
अब वह किताबों से भरा पड़ा है
और हम भटक रहें शब्दों के भीड़ में
उसका मिलना
किताबो के बीच सूखें फूल की खुशबूओ की तरह है
जिसे ना कोई किताब
ना वक्त ही कैद कर पाया
वह उड़ता रहा हम भटकते रहे
और अब कैद में हैं
सजे-सँवरे किताबों के बीच !!
गहरे भाव ||
ReplyDeleteशुभकामनायें ||
पोस्ट दिल को छू गयी.......कितने खुबसूरत जज्बात डाल दिए हैं आपने..........बहुत खूब
ReplyDeleteबेह्तरीन अभिव्यक्ति .आपका ब्लॉग देखा मैने और नमन है आपको
और बहुत ही सुन्दर शब्दों से सजाया गया है लिखते रहिये और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.
http://madan-saxena.blogspot.in/
http://mmsaxena.blogspot.in/
http://madanmohansaxena.blogspot.in/
अच्छी रचना
ReplyDeleteबहुत सुंदर
मेरे नए ब्लाग TV स्टेशन पर देखिए नया लेख
http://tvstationlive.blogspot.in/2012/10/blog-post.html
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (06-10-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
आज 06-10-12 को आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
ReplyDelete.... आज की वार्ता में ... उधार की ज़िंदगी ...... फिर एक चौराहा ...........ब्लॉग 4 वार्ता ... संगीता स्वरूप.
कहर कुछ इसतरह बरपा था कि
ReplyDeleteसम्वेदनायें शाखो से कट कटकर गिर गई थी और
हम ठूंठ पेड़ को
समझ बैठे थे अपना घर
गहन अभिव्यक्ति
बहुत सुन्दर ...अंतर्भाव से रचित रचना |
ReplyDeleteधन्यवाद
आइये आपका हमारे ब्लॉग पर भी स्वागत हैं →
http://safarhainsuhana.blogspot.in/
वाह...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर...गहन अभिव्यक्ति....
अनु
khubsurat bhaw......
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