दहलीज से बाहर उसने
कभी अपना पांव न रखा था
यही वजह थी कि खिडकी और रौशनदान वाली कवितायें
उसके रुह को छू लेती थी,
कभी अपना पांव न रखा था
यही वजह थी कि खिडकी और रौशनदान वाली कवितायें
उसके रुह को छू लेती थी,
लकीरों मे कैद गौरैया
खुले आसमान का सपना
कभी देख नही पाती थी
उसे तो रौशनदान से
सुबह का सूरज देखने भर की आदत थी,
खुले आसमान का सपना
कभी देख नही पाती थी
उसे तो रौशनदान से
सुबह का सूरज देखने भर की आदत थी,
कविता के लिये
ज्यादा शब्दों की जरुरत नही होती
और कहानियों मे
वह उलझना नही चाहती
क्योंकि उसे अंधेरें का रहस्य पता है !
ज्यादा शब्दों की जरुरत नही होती
और कहानियों मे
वह उलझना नही चाहती
क्योंकि उसे अंधेरें का रहस्य पता है !
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन लीला चिटनिस और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
ReplyDeletebahut bahut shukriya aur aabhar !
ReplyDeleteमर्मस्पर्शी पंक्तियाँ बहुत दिनो के बाद आपको लिखते देखकर खुशी हुई।
ReplyDeleteतहे दिल से शुक्रिया और आभार !
Deleteबहुत ख़ूब ...
ReplyDeleteउसके सीमित आसमान की कोई थाह नहि ...
उसका विस्तृत आकाश बस उसका ही है ... जाने उसका रौशनदान ही है ...
तहेदिल से शुक्रिया और आभार !
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