उनको अपनी दुकान की पडी है
वे यह नहीं जानना चाहते है कि
इस शहर में गरीब कितने है
हालांकि वे गरीबी से ही बाहर आये है
सम्पूर्ण सफ़ेद और सम्पूर्ण स्याह अपनी जगह तलाश रही है
क्योंकि लोगो को श्वेत श्याम पर यकीन नही रहा और
उनकी नज़रे टिकी है सिर्फ़ धूसर पर
क्योंकि
इससे उनके फ़ायदे के कई आयाम खुलते है
जिनकी प्रधानता है
वे धूसर के माध्यम से लूट मचा रहे है
दूसरी तरफ चिट्टियों की धर्म परिवर्तन करवायी जा रही है
बड़े आकारवाले लोग कुर्सी तलाश कर
उसके नीचे और ऊपर अपना अपना जगह बना चुके है
ताकि बचे हुये वक्त में
भौतिकता को ऊँचाई देने सके
बगुले प्रवचन कर रहे है
खेतों की हरियाली को मछलियां निगल रही है
और बगुले मछलियों को,
घासें पीली है नगर में
और हरे होने की उपाय तलाशी जा रही है
समस्त राजनीतिक प्रपंचो के बीच
भूखे लोग अन्धेरे मे गुम है
और इनकी तदाद
दिन दून्ना और रात चौगुना के क्रम में बढ रही है
ज्ञान की तलाश प्रकाश है
और प्रकाश की तलाश में भटके हुए
कुछ गिने चुने लोग है
अब आप की बताओ साहब, कि 'इतने' से लोग
दीपक की टिमटिमाहट से जग को रौशन कर पायेंगे !
वे यह नहीं जानना चाहते है कि
इस शहर में गरीब कितने है
हालांकि वे गरीबी से ही बाहर आये है
सम्पूर्ण सफ़ेद और सम्पूर्ण स्याह अपनी जगह तलाश रही है
क्योंकि लोगो को श्वेत श्याम पर यकीन नही रहा और
उनकी नज़रे टिकी है सिर्फ़ धूसर पर
क्योंकि
इससे उनके फ़ायदे के कई आयाम खुलते है
जिनकी प्रधानता है
वे धूसर के माध्यम से लूट मचा रहे है
दूसरी तरफ चिट्टियों की धर्म परिवर्तन करवायी जा रही है
बड़े आकारवाले लोग कुर्सी तलाश कर
उसके नीचे और ऊपर अपना अपना जगह बना चुके है
ताकि बचे हुये वक्त में
भौतिकता को ऊँचाई देने सके
बगुले प्रवचन कर रहे है
खेतों की हरियाली को मछलियां निगल रही है
और बगुले मछलियों को,
घासें पीली है नगर में
और हरे होने की उपाय तलाशी जा रही है
समस्त राजनीतिक प्रपंचो के बीच
भूखे लोग अन्धेरे मे गुम है
और इनकी तदाद
दिन दून्ना और रात चौगुना के क्रम में बढ रही है
ज्ञान की तलाश प्रकाश है
और प्रकाश की तलाश में भटके हुए
कुछ गिने चुने लोग है
अब आप की बताओ साहब, कि 'इतने' से लोग
दीपक की टिमटिमाहट से जग को रौशन कर पायेंगे !
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, ईश्वर चन्द्र विद्यासागर जी की १२७ वीं पुण्यतिथि “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteबहुत खूब ...
ReplyDeleteपर कोशिश तो करनी होगी ... दीप तो जलते रहना होगा ....
नहीं तो आशा नहीं होगी ... विश्वास नहीं होगा ...
सुन्दर रचना है ...
जय मां हाटेशवरी...
ReplyDeleteअनेक रचनाएं पढ़ी...
पर आप की रचना पसंद आयी...
हम चाहते हैं इसे अधिक से अधिक लोग पढ़ें...
इस लिये आप की रचना...
दिनांक 31/08/2018
को
पांच लिंकों का आनंद
पर लिंक की गयी है...
इस प्रस्तुति में आप भी सादर आमंत्रित है।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (31-07-2018) को "सावन आया रे.... मस्ती लाया रे...." (चर्चा अंक-3049) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुन्दर। थोड़ा टंंकण पर ध्यान दें। दुकान, टिकी आदि।
ReplyDeleteजी कोशिश रहेगी
Deleteउत्साहवर्धन के लिये आभारी हूं !
सादर !
सुंदर
ReplyDeleteआभार और शुक्रिया !
Deleteवाह बहुत सुन्दर।
ReplyDeleteshukriyaa aur aabhaar !
Deleteसुंदर रचना
ReplyDeleteshukriya aur aabhaar !
Deleteसुंदर रचना
ReplyDeleteशुक्रिया और आभार आपका !
Delete