अवसाद में
जब आप टटोलते हो
जमीन
जहां ठंडक और छांव मिलस के
उसकी जगह आपको
कुछ नीले-पीले पत्तों वाली
जमीन देखने को मिले
आप सांस लेना चाहो
और ठीक उसी वक्त
ऊंच-नीच और उबड-खाबड जमीन पर
अपने आसपास के अधिकांश लोगों को
सिर्फ़ अपने तंबु लगाने के लिये
मरते मिटते देखो
ठीक ऐसे वक्त में
समंदर को भी उबलता पाओ
लहरों की तहस नहस सबने कर डाली है
तो ऐसे में
आप एक छोटी सांस तक भी ले पाओगे
जब जमीन दूर दूर तक सूखा हो
जहां अधिकांश लोग
अपनी भूख चबाने में लगे हो! !
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (24-03-2019) को "चमचों की भरमार" (चर्चा अंक-3284) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
यथार्थ बोध कराती सुंदर रचना
ReplyDeleteसुन्दर।
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 23/03/2019 की बुलेटिन, " वास्तविक राष्ट्र नायकों का बलिदान दिवस - २३ मार्च “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
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