तू बदल दे
चाहे अपनी जुबान
चिराग जलाये बैठे है
लौटना होगा उन्हें
हर हाल में
सूरज
शब्द शब्द कविता में
सुबह बन उग जायेगा
मासूमों की चीख को
तू चाहे अनसूना रख
अब तो जर्रे जर्रे से कोई
इन्कलाब का मंत्र गुंजेगा
एक अंधेरा हर तरफ
खोने का सबब बना रहा
घने जंगलो की बीच से ही
कोई आग जलेगी
अंधेरा घना
आस का दीपक
टिमटिमाता हुआ
सच है कि तू
मिशाल बन जायेगा
पत्थरों पर टुटते
हाथ मासूमों की
तपिशभरी तेरी कविता से
पहाड
मोम की तरह पिघल जायेगा
गर जल गया कोई दीया
तो मशाल बन जायेगा !!
चाहे अपनी जुबान
चिराग जलाये बैठे है
लौटना होगा उन्हें
हर हाल में
सूरज
शब्द शब्द कविता में
सुबह बन उग जायेगा
मासूमों की चीख को
तू चाहे अनसूना रख
अब तो जर्रे जर्रे से कोई
इन्कलाब का मंत्र गुंजेगा
एक अंधेरा हर तरफ
खोने का सबब बना रहा
घने जंगलो की बीच से ही
कोई आग जलेगी
अंधेरा घना
आस का दीपक
टिमटिमाता हुआ
सच है कि तू
मिशाल बन जायेगा
पत्थरों पर टुटते
हाथ मासूमों की
तपिशभरी तेरी कविता से
पहाड
मोम की तरह पिघल जायेगा
गर जल गया कोई दीया
तो मशाल बन जायेगा !!
सुन्दर रचना....
ReplyDeleteसादर
sundar rachna
ReplyDeleteगर जल गया कोई दीया
ReplyDeleteतो मशाल बन जायेगा !…………वाह सार्थक रचना