रोटी की गोल बाहों में सिमटें हुये है सब

रोटी की तरह गोल
दुख में
घुम रहे है कई तरह से वे
कोई सेकता है मानो
घण्टों रोटी

ठंढे चुल्हें पर
भुख भरने को
सिकती रही रोटी 
खाली डब्बे जैसा पेट में
जलती रही गोल गोल रोटी

गरम तावे पर चाँद सा
दिखता रोटी
चाँदी के कटोरे से
छलकता सपना
रोटी

बच्चों के ख्वाब में
दूध-भात लाता
गोल गोल मामा उजली रोटी
सुबह का सूरज
आस का गोला
रोटी

पत्थर तोडती माँ के
हाथों से रिसती
गोल रोटी
सडक के किनारे सोते बच्चों की
गोल आंखो से
टपकती रोटी
धूल से सनी
फटी आंचल में छुपी
ममता में डुबी गोल रोटी 

भूख के समंदर में
डुबता सूरज 
गोल रोटी
रात की गहराई में
लहरों की अंगडाई पर
मचलती फिर
वही रोटी!!!

6 comments:

  1. भूख के समंदर में
    डुबता सूरज
    गोल roti
    adbhut bhavabhivyakti !

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  2. रोटी का व्याकरण भी अलग ही होता है।

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  3. बहुत ही सुंदर भावाव्यक्ति बधाई ....

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  4. लहरों की अंगडाई पर
    मचलती फिर
    वही रोटी!!!
    बहुत सुन्दर ..

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  5. वाह!! रोटी से तुलना करना पसंद आया.
    लाजवाब कविता है!!

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