चल और अचल लम्हों के बीच जिन्दगी कुछ ऐसी है

दो-चार कदम पर था फूल-चमन 
दो-चार कदम पर वह भी थी
जीवन ठहरा, एक समंदर
दरिया की कहानी थी

दो-चार कदम पर थे चाँद-चांदनी
दो-चार कदम पर ही जुगनू थे
रौशन सूरज, फिर भी तन्हा
सितारों की कहानी थी

दो-चार कदम पर थे मंदिर-मस्जिद
दो-चार कदम पर, वे भी थे
सबसे ऊपर एक नाम था
पर अन्धो की कहानी थी

दो-चार कदम पर था सुबह-सवेरा
दो-चार कदम पर ही अंधियारा था
जलता सूरज, सुन्दर बहुत था
भटकन की कहानी थी

दो-चार कदम पर थे लोग-बाग़    
दो-चार कदम पर ही जंगल था
हरियाली थी बहुत सुहानी
पर मिटने की कहानी थी !

10 comments:

  1. संवेदनशील रचना अभिवयक्ति.....

    ReplyDelete
  2. गहरी और अर्थ लिए ... प्रभावी अभिव्यक्ति ...

    ReplyDelete
  3. सुन्दर भावों का प्रगटीकरण -

    ReplyDelete
  4. सार्थक सन्देश लिए हुए.... खूबसूरत रचना......

    शब्दों की मुस्कुराहट पर .... हादसों के शहर में :)

    ReplyDelete
  5. आपकी इस शानदार प्रस्तुति की चर्चा कल मंगलवार २३/७ /१३ को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां हार्दिक स्वागत है सस्नेह ।

    ReplyDelete
  6. आपकी यह रचना कल मंगलवार (23-07-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.

    ReplyDelete
  7. कई बार दो चार क़दमों की दूरी बहुत हो जाती है !

    ReplyDelete
  8. बहुत सुंदर और सार्थक रचना
    शुभकामनाये



    यहाँ भी पधारे
    गुरु को समर्पित
    http://shoryamalik.blogspot.in/2013/07/blog-post_22.html

    ReplyDelete

  9. बहुत सुन्दर प्रस्तुति है
    कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें
    http://saxenamadanmohan.blogspot.in/

    ReplyDelete
  10. बहुत सुन्दर रचना

    ReplyDelete