दो-चार कदम पर था फूल-चमन
दो-चार कदम पर वह भी थी
जीवन ठहरा, एक समंदर
दरिया की कहानी थी
दो-चार कदम पर थे चाँद-चांदनी
दो-चार कदम पर ही जुगनू थे
रौशन सूरज, फिर भी तन्हा
सितारों की कहानी थी
दो-चार कदम पर थे मंदिर-मस्जिद
दो-चार कदम पर, वे भी थे
सबसे ऊपर एक नाम था
पर अन्धो की कहानी थी
दो-चार कदम पर था सुबह-सवेरा
दो-चार कदम पर ही अंधियारा था
जलता सूरज, सुन्दर बहुत था
भटकन की कहानी थी
दो-चार कदम पर थे लोग-बाग़
दो-चार कदम पर ही जंगल था
हरियाली थी बहुत सुहानी
पर मिटने की कहानी थी !
दो-चार कदम पर वह भी थी
जीवन ठहरा, एक समंदर
दरिया की कहानी थी
दो-चार कदम पर थे चाँद-चांदनी
दो-चार कदम पर ही जुगनू थे
रौशन सूरज, फिर भी तन्हा
सितारों की कहानी थी
दो-चार कदम पर थे मंदिर-मस्जिद
दो-चार कदम पर, वे भी थे
सबसे ऊपर एक नाम था
पर अन्धो की कहानी थी
दो-चार कदम पर था सुबह-सवेरा
दो-चार कदम पर ही अंधियारा था
जलता सूरज, सुन्दर बहुत था
भटकन की कहानी थी
दो-चार कदम पर थे लोग-बाग़
दो-चार कदम पर ही जंगल था
हरियाली थी बहुत सुहानी
पर मिटने की कहानी थी !
संवेदनशील रचना अभिवयक्ति.....
ReplyDeleteगहरी और अर्थ लिए ... प्रभावी अभिव्यक्ति ...
ReplyDeleteसुन्दर भावों का प्रगटीकरण -
ReplyDeleteसार्थक सन्देश लिए हुए.... खूबसूरत रचना......
ReplyDeleteशब्दों की मुस्कुराहट पर .... हादसों के शहर में :)
आपकी इस शानदार प्रस्तुति की चर्चा कल मंगलवार २३/७ /१३ को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां हार्दिक स्वागत है सस्नेह ।
ReplyDeleteआपकी यह रचना कल मंगलवार (23-07-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.
ReplyDeleteकई बार दो चार क़दमों की दूरी बहुत हो जाती है !
ReplyDeleteबहुत सुंदर और सार्थक रचना
ReplyDeleteशुभकामनाये
यहाँ भी पधारे
गुरु को समर्पित
http://shoryamalik.blogspot.in/2013/07/blog-post_22.html
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति है
कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें
http://saxenamadanmohan.blogspot.in/
बहुत सुन्दर रचना
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