चिराग जलाये रखा
मद्धम आंच पर
भूख पकते रहे
उम्मीद में
वक्त बेरहम निकला
पत्थर तोड़ते वक्त
उम्मीद टाँकते रहे
मासूम हथेलियो पर
कई कई छाला निकला
रिसते जख्म के चेहरे डरावने निकले
वक्त कोई भी हो साहब
जख्म तो
हरहाल में जख्म निकला
ना उम्मीद जन्मी और ना इंकलाब निकला
मुफ़लिसी में सिर नीचे रही
ईमान की मौत में
कब्र तक जनाज़ा निकला
कांच के अक्स में
और ना जाने क्या क्या निकला !
मद्धम आंच पर
भूख पकते रहे
उम्मीद में
वक्त बेरहम निकला
पत्थर तोड़ते वक्त
उम्मीद टाँकते रहे
मासूम हथेलियो पर
कई कई छाला निकला
रिसते जख्म के चेहरे डरावने निकले
वक्त कोई भी हो साहब
जख्म तो
हरहाल में जख्म निकला
ना उम्मीद जन्मी और ना इंकलाब निकला
मुफ़लिसी में सिर नीचे रही
ईमान की मौत में
कब्र तक जनाज़ा निकला
कांच के अक्स में
और ना जाने क्या क्या निकला !
बहुत ही खुबसूरत ख्यालो से रची रचना......
ReplyDeleteबहुत मर्मस्पर्शी रचना...बहुत सुन्दर
ReplyDeletesundar bhavabhivyakti .aabhar
ReplyDeletehttp://bhartiynari.blogspot.com
बढ़िया प्रस्तुति-
ReplyDeleteआभार महोदया-
दिल को छूते हुए शब्द ... लाजवाब रचना ...
ReplyDeleteसुदर रचना |
ReplyDeleteकल 08/11/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteधन्यवाद!
samyik aur prabhavi rachana
ReplyDeleteसुन्दर कवितायें
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